-सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस बयान की आलोचना की जिसमें छाती को छूना, पायजामे का कमरबंद खींचना 'बलात्कार नहीं है, कहा...
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित आदेश पर रोक लगा दी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि नाबालिग लड़की के सीने को छूना, उसके पायजामे का कमरबंद खींचना और उसे पुल के नीचे घसीटना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास का अपराध नहीं माना जा सकता। इलाहाबाद न्यायालय ने कहा था कि यह कृत्य प्रथम दृष्टया पोक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीडऩ का अपराध प्रतीत होता है।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ स्वत: संज्ञान लिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा यह एक गंभीर मामला है और जिन न्यायाधीशों ने यह फैसला दिया है, वे पूरी तरह असंवेदनशील हैं। हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय न्यायाधीशों की ओर से संवेदनशीलता की पूरी कमी को दर्शाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान अदालत की सहायता करने को कहा है। न्यायमूर्ति गवई ने कहा हमें खेद है कि न्यायाधीश ने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया। इस मामले को उनकी स्वयं की पहल पर उठाया गया है। हमने उच्च न्यायालय का आदेश देखा है। उच्च न्यायालय के आदेश के कुछ पैराग्राफ 24, 25 और 26 न्यायाधीश की ओर से संवेदनशीलता की पूरी कमी को दर्शाते हैं और यह निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया है। यह फैसला चार महीने बाद सुनाया गया है। पीडि़ता की मां ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है और उनकी याचिका को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाबालिग लड़की से बलात्कार के प्रयास से जुड़े मामले में 17 मार्च को यह विवादास्पद फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर टिप्पणी पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने एनजीओ 'वी द वूमेन ऑफ इंडियाÓ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता द्वारा भेजे गए पत्र के आधार पर मामले का संज्ञान लिया। पीडि़ता की मां के अनुसार आरोपी पवन और आकाश ने 11 वर्षीय पीडि़ता के स्तनों को पकड़ लिया और आकाश ने उसके पायजामे का फीता काट दिया और उसे पुल के नीचे खींचने की कोशिश की।
इस मामले में दोनों आरोपियों पवन और आकाश को कासगंज कोर्ट ने बलात्कार और पोक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत तलब किया था। उच्च न्यायालय में इसे चुनौती दिए जाने के बाद न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह कृत्य बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह भी निर्देश दिया गया है कि आरोपी के खिलाफ पोक्सो मामला दर्ज किया जाए।