नई दिल्ली। बाहुबली रॉकेट को कल श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। चंद्रयान 3 ने अब पृथ्वी की परिक्रमा शुरू कर दी है। चंद्रयान चंद्रमा के अंधेरे हिस्से में उतरेगा। सफल होने पर भारत ऐसा करने वाला पहला देश होगा। भारत ऐसा बहुत पहले ही कर चुका होता, लेकिन अमेरिका ने भारत की राह कई अटकले डाली। इसके चलते भारत को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है।
लगभग तीन दशक पहले ही भारत अंतरिक्ष में अपनी बादशाहत कायम कर सकता था। जिस अमेरिका को आज हम इतना महत्व देते है उसी अमेरिका ने तब भारत की मदद नहीं की बल्कि दूसरे देशों को भी मदद करने से रोका। तब भारत और अमेरिका के रिश्ते आज जैसे नहीं थे। यही कारण है कि अमेरिका ने कई बार भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद की है। लेकिन अमेरिका भारत की मदद नहीं कर सका।
अंतरिक्ष में जाने के लिए क्रायोजेनिक तकनीक आवश्यक थी। वह तकनीक तब अमेरिका, रूस, जापान और फ्रांस के पास थी। चंद्रयान 3 में भी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है। आसमान में उडऩे के लिए बहुत ताकत की जरूरत होती है। यह इंजन उसके लिए उपयोगी है। कल की सफलता ने एक बार फिर कई लोगों के मन में वह घाव ताजा कर दिया है।
रूस को छोड़कर सभी देशों ने भारत को यह तकनीक देने से इनकार कर दिया। 90 के दशक में भारत के वैज्ञानिक कड़ी मेहनत कर रहे थे। रूस के सहमत होते ही अमेरिका ने बड़ी चाल चली। अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों के डर का हवाला देते हुए रूस से प्रौद्योगिकी भी रोक दी थी। इसके लिए अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था के उल्लंघन का डर दिखाया था।
अगर ये क्रायोजेनिक इंजन तकनीक भारत को तभी मिल गई होती तो 90 के दशक में ही भारत अंतरिक्ष में अपना दबदबा बना चुका होता। लेकिन तब भारत को अमेरिका ने रोका।