भारतीय गरीबी की गिरफ्त से बाहर आये, आँकड़े उत्साहवर्धक

 




-2005 से 2021 की अवधि के आँकड़े उत्साहवर्धक
-जानकारी वैश्विक एमपीआई मूल्यों
के आधार पर 

नई दिल्ली। भारत में गरीबी उन्मूलन का नारा सफल होता दिख रहा है। चाहे इसके पीछे कोई भी पार्टी हो, पिछले 15 वर्षों में 41.5 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर आये हैं। 2005 से 2021 की अवधि के आँकड़े उत्साहवर्धक हैं। यह जानकारी वैश्विक एमपीआई मूल्यों के आधार पर सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के साथ चीन, कंबोडिया, कांगो जैसे 25 देश भी इसमें शामिल है जिनको गरीबी उन्मुलन में फायदा मिला है।

यूएनडीपी के मुताबिक, 2000 से 2022 के बीच 81 देशों ने गरीब आबादी के उतार-चढ़ाव का अध्ययन किया। ग्लोबल एमपीआई गरीबी में कमी के साथ-साथ यह भी मापता है कि लोग अपने दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में गरीबी का अनुभव कैसे करते हैं।

यह शिक्षा और स्वास्थ्य तक पहुंच से लेकर जीवन स्तर, पेयजल, स्वच्छता और बिजली तक हर चीज पर नजऱ रखता है। भारत में गरीबी 2005-2006 में 55 प्रतितशत (64.5 करोड़) से घटकर 2019-2021 में 16 प्रतिशत (23 करोड़) हो गई है।

पोषण संबंधी गरीबी 2005-06 में 44प्रतिशत से घटकर 2019/21 में 12प्रतिशत हो गई है, जबकि शिशु मृत्यु दर 4प्रतिशत से घटकर 1.5प्रतिशत हो गई है। एलपीजी जैसे खाना पकाने के ईंधन से वंचित और गरीबों की आबादी 53प्रतिशत से घटकर 14प्रतिशत हो गई है। वहीं, स्वच्छता से वंचित लोग 50प्रतिशत से घटकर 11.3प्रतिशत पर आ गए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छ पेयजल तक पहुंच के बिना आबादी 16 प्रतिशत से घटकर 3 प्रतिशत हो गई, बिजली की कमी 29 प्रतिशत से घटकर 2प्रतिशत हो गई और आवास की कमी 44 प्रतिशत से घटकर 14प्रतिशत हो गई।

भारत सभी संकेतकों में गरीबी कम करने में सफल रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे तेज प्रगति गरीब राज्यों और समूहों में हुई है, जिनमें बच्चे और वंचित जाति समूहों के लोग भी शामिल हैं।

110 देशों के 6.1 अरब लोगों में से 1.1 अरब (18प्रतिशत से थोड़ा अधिक) कुछ हद तक अत्यधिक गरीबी में रहते हैं। अफ्रीका (53.4 करोड़) और दक्षिण एशिया (38.9 करोड़) में छह में से पांच गरीब लोग रहते हैं।

इस गरीब आबादी का आधा (566 मिलियन) 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का मानना है कि अगर उन्हें शिक्षा और पोषण मिले तो वे भी जल्द ही गरीबी रेखा को पार कर जाएंगे।

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