- जन्म से ही मोतियाबिंद से पीड़ित पूजा का ‘चिरायु’ में हुआ निःशुल्क ईलाज
- नेत्रहीन स्कूल छोड़कर अगले साल से पढ़ेगी सामान्य स्कूल में
- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम जन्मजात बीमारियों से पीड़ित अनेक मासूमों की लौटा रहा है मुस्कान
अम्बिकापुर। जन्म से ही मोतियाबिंद से पीड़ित 13 वर्ष की पूजा (बदला हुआ नाम) इस साल पहली बार अपनी आंखों से रोशनी के त्यौहार दीपावली की जगमगाहट देखेगी। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत ‘चिरायु’ योजना ने उसकी दोनों आंखों की रोशनी लौटा दी है। सरगुजा के बतौली में जीवन ज्योति नेत्रहीन विद्यालय में पढ़ने वाली पूजा जन्म से ही मोतियाबिंद से पीड़ित होने के कारण देखने में असमर्थ थी। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण उसका परिवार इलाज नहीं करवा पा रहा था। स्कूल जाने की उसकी ललक और जिद के कारण पिता ने उसे बतौली के जीवन ज्योति नेत्रहीन विद्यालय में भर्ती करा दिया था।
सरगुजा में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के जिला नोडल अधिकारी डॉ. अमीन फिरदौसी ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के बतौली के ‘चिरायु’ दल ने नेत्रहीन स्कूल में पूजा के आंखों की जांच की और उसकी दृष्टि लौटाने ऑपरेशन का सुझाव दिया। बेटी के जीवन में उम्मीद की किरण देख उसके पिता ने सहर्ष ऑपरेशन के लिए सहमति दी। वर्ष-2018 में रायपुर में पूजा की एक आंख का सफल ऑपरेशन किया गया और इस साल अगस्त में अंबिकापुर में उसकी दूसरी आंख का ऑपरेशन हुआ है। समय पर जांच और ऑपरेशन हो जाने के कारण आज पूजा अपनी दोनों आंखों से सब कुछ देख पा रही है। अगले शैक्षणिक सत्र से वह नेत्रहीन विद्यालय छोड़कर सामान्य स्कूल में पढ़ेगी। इस साल की दीवाली को वह पहली बार अपनी आंखों से रोशन होते देखेगी।
’चिरायु’ के तहत आंगनबाड़ी व स्कूल में 44 तरह की बीमारियों की होती है निःशुल्क जांच व उपचार
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के उप संचालक डॉ. व्ही.आर. भगत ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा संचालित ‘चिरायु’ योजना के तहत चिकित्सा दलों द्वारा आंगनबाड़ी में दर्ज व स्कूलों में अध्ययनरत 18 वर्ष तक के सभी बच्चों का निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण व यथासंभव इलाज किया जाता है। इसके अंतर्गत 44 तरह की बीमारियों का उपचार किया जाता है।
आंख से कम दिखाई देना, कानों से कम सुनाई देना, विटामिन की कमी, एनीमिया, हृदय रोग जैसी बीमारियों की पहचान कर उनका इलाज किया जाता है। उन्होंने बताया कि जिन बच्चों का इलाज स्थानीय स्तर पर संभव नहीं हो पाता उन्हें ‘चिरायु’ दलों के द्वारा बेहतर इलाज के लिए उच्च स्वास्थ्य संस्थाओं में रिफर कर इलाज कराया जाता है। वर्तमान में प्रदेश में कुल 330 ‘चिरायु’ दल सक्रिय हैं।