पीएफआई के बैन होने से अब संगठन के सदस्यों का क्या होगा? प्रक्रिया जानें

  


नई दिल्ली। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और उसके सहयोगियों पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत 5 साल का प्रतिबंध लगाया गया है। प्रतिबंध के बाद, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को पीएफआई कार्यालयों पर नकेल कसने और धन को जब्त करने के लिए कहा है। वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, पीएफआई के सदस्यों को संगठन से अपनी असहमति की घोषणा करनी होगी, लेकिन अगर सदस्य संगठन से जुड़े रहते हैं, तो उन्हें 2 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।


केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएफआई पर प्रतिबंध की अधिसूचना जारी की है। यह अधिसूचना कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा प्रचारित और प्रसारित की जाएगी। यह अधिसूचना अब स्थानीय पुलिस द्वारा अपने क्षेत्र के पीएफआई कार्यालयों में पोस्ट की जाएगी। साथ ही इसकी प्रतियां संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों को भी भेजी जाएंगी। जिन जगहों पर पीएफआई की गतिविधियां हुई थीं, वहां लाउडस्पीकरों पर भी इसकी घोषणा की जाएगी।



यूएपीए एक्ट की धारा 3 के तहत पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यूएपीए अधिनियम के अनुसार, जब किसी संगठन को अवैध घोषित किया जाता है, तो संबंधित संगठन के अधिकारियों को 15 दिन का समय दिया जाता है। इस दौरान पीएफआई और उसके एसोसिएशन के सदस्यों को अपने पास मौजूद दस्तावेज पुलिस को सौंपने होते हैं। इन सदस्यों को संगठन छोडऩे के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा, लेकिन इसके बाद भी इनके कब्जे में कोई आपत्तिजनक दस्तावेज पाए जाने पर इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा।


जब किसी एसोसिएशन को अवैध घोषित किया जाता है, तो केंद्र सरकार एसोसिएशन के कार्यालय, भवन या घर को जब्त कर सकती है। साथ ही कलेक्टर दो गवाहों के सामने संस्था की चल संपत्ति की सूची बनाता है.


यूएपीए अधिनियम के तहत, संबंधित व्यक्ति को यह घोषित करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाता है कि उसके परिसर का उपयोग अवैध उद्देश्यों के लिए नहीं किया गया है। इसके बाद भी अगर संगठन के सदस्य वहां एकत्र होकर बैठकें करते हैं तो व्यक्ति को दो साल की जेल और जुर्माना हो सकता है।

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